नई दिल्ली, 25 अप्रैल: यह कहानी मोक्ष नामक एक छोटे से बच्चे की है, जो "नॉक नीज़" बीमारी के साथ जन्मा था, जिसमें पैरों की हड्डियाँ अंदर की ओर मुड़ी होती हैं। कुछ दिन बाद, उसे एक शिशु देखभाल केंद्र में छोड़ दिया गया। कई परिवार आए, लेकिन उसकी बीमारी देखकर कोई उसे अपनाने को तैयार नहीं हुआ।
फिर एक दंपत्ति ने मोक्ष को देखा। उन्होंने उसकी बीमारी को न देखकर, एक बच्चे को अपनाने का निर्णय लिया। कोरोना की दूसरी लहर के चलते प्रक्रिया लंबी हो गई, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। वीडियो कॉल पर उसे कहानियाँ सुनाईं, उसे हँसाया, और इंतज़ार करते रहे।
नए साल से पहले मोक्ष अपने नए घर पहुँच गया। वहाँ उसे सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि ढेर सारा प्यार भी मिला। उसके माता-पिता ने उसे तैराकी, एक्टिंग और पार्कौर सिखाया। धीरे-धीरे मोक्ष न सिर्फ़ स्वस्थ हुआ, बल्कि वह अपनी क्लास का सबसे बेहतरीन स्टूडेंट बन गया।
आज, मोक्ष की कहानी सिर्फ एक बच्चे की नहीं, बल्कि उन हज़ारों बच्चों की कहानी है जिन्हें अब प्यार से गोद लिया जा रहा है। भारत में गोद लेने की प्रक्रिया अब सामान्य और आसान बन चुकी है। 2024 में, कुल 4,515 कानूनी गोद लेने के मामले दर्ज हुए, जो एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है।
भारत सरकार की संस्था, CARA (Central Adoption Resource Authority), ने इस प्रक्रिया को और भी सुलभ और सुरक्षित बनाया है। अब हर बच्चा, चाहे वह अनाथ हो या परित्यक्त, एक कानूनी प्रक्रिया के तहत सुरक्षित रूप से गोद लिया जा सकता है। गोद लेने का यह विकल्प अब पहले से कहीं अधिक आम हो चुका है और यह बच्चों के लिए एक नई शुरुआत, एक नया परिवार और फिर से बचपन जीने की उम्मीद का प्रतीक बन चुका है।
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